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छै दिन में बारह नाटक : अस्सी साल

छै दिन में बारह नाटक : अस्सी साल

उषा वैरागकर आठले

(मेरे लिए यह सुखद संयोग है कि मुंबई इप्टा के अस्सीवें वर्ष के उत्सव के समय मैं मुंबई में हूँ और अनेक गतिविधियों को प्रत्यक्ष देखकर भागीदारी निभा रही हूँ। सितम्बर 2022 में मुंबई इप्टा द्वारा 50 वर्षों से जारी अंतरमहाविद्यालयीन नाट्य प्रतियोगिता की लोकप्रियता से मेरा साक्षात्कार हुआ। 22 महाविद्यालयों ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया था। एक महाविद्यालय के प्रतिभागी कलाकारों तथा उनके निर्देशक प्राध्यापक से हुई बातचीत से मुझे इस नाट्य प्रतियोगिता के महत्व का अहसास हुआ। इसमें भाग लेना और विजेता होना अनेक कलाकार-प्राध्यापकों के लिए प्रतिष्ठा का विषय था। हरेक महाविद्यालय के प्रतिभागी अपनी पूरी तैयारी के साथ आते हैं। न केवल पूरी मेहनत और कल्पनाशीलता के साथ नाटक चुनते और पूर्वाभ्यास करते हैं, वरन मंच के सहायक उपादानों – लाइट, सेट्स, कास्ट्यूम, म्युज़िक, साउण्ड सहित प्रोडक्शन के सभी उपादानों के बेहतरीन संयोजन को प्रस्तुत करने के लिए कटिबद्ध होते हैं। इस नाट्य प्रतियोगिता की एक विशेषता है कि इनमें स्क्रिप्ट प्रायः नई और युवाओं द्वारा लिखी हुई, समसामयिक विषयों, घटनाओं या समस्याओं पर केन्द्रित होती है इसलिए युवा कलाकारों की अनगढ़ता के साथ एक ताज़ापन भी दर्शक को महसूस होता है। मुंबई इप्टा द्वारा आयोजित इस नाट्य प्रतियोगिता के अतिरिक्त कुछ पुराने तथा कुछ नए नाटकों का मंचन देखने का अवसर भी मुझे मिला तथा अभी अभी सम्पन्न हुआ यह नाट्य समारोह भी देखा। प्रस्तुत है पहली कड़ी में मुंबई इप्टा के नाट्य समारोह के पहले दो दिनों का ब्यौरा।)

इप्टा मुंबई की स्थापना 1942 में इप्टा के पहले राष्ट्रीय सम्मेलन के पहले हुई। इसलिए इस वर्ष 80 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में छै दिनों में बारह नाटक प्रस्तुत करने का दुस्साहसी बीड़ा मुंबई इप्टा ने उठाया। पृथ्वी थियेटर में प्रतिदिन दो मंचनों के साथ 13 से 18 दिसम्बर 2022 तक नाट्य समारोह सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। चूँकि मुंबई महानगर समूचे भारत के निवासियों का प्रतिनिधित्व करता है, विभिन्न संस्कृतियों का कोलाज बनाता है, इसलिए इन अस्सी वर्षों में मुंबई इप्टा ने हिंदी, अंग्रेज़ी, गुजराती, मराठी, तेलुगु और पंजाबी में लगभग 200 नाटक प्रस्तुत कर भारत की बहुरंगी विविधता को मंच प्रदान किया। इप्टा की सभी इकाइयों से मुंबई इप्टा की इकाई इस मायने में पृथक है कि इसके अनेक सदस्य रंगमंच के साथ-साथ फिल्मों तथा धारावाहिकों में भी निरंतर लोकप्रिय रहे हैं।

13 दिसम्बर को उद्घाटन कार्यक्रम शाम चार बजे आरम्भ हुआ। दीप प्रज्वलन के बाद प्रसिद्ध संगीतकार कुलदीप सिंह के निर्देशन तथा नेतृत्व में जनगीत प्रस्तुत किये गए। इस अवसर पर मुंबई इप्टा के नए-पुराने कलाकार तथा प्रशंसक उपस्थित थे। 80 वर्षगाँठ के अवसर पर प्रकाशित स्मारिका का विमोचन भी किया गया।

उसके बाद 5 बजे से इप्टा के संस्थापक सदस्य अण्णा भाऊ साठे द्वारा लिखित और आज की परिस्थितियों पर सटीक टिप्पणी करता मराठी नाटक ‘मुंबई कोणाची’ से नाट्य समारोह की शुरुआत हुई। शिवदास घोडके द्वारा निर्देशित यह नाटक दो लघु नाटकों ‘मुंबई कोणाची’ तथा ‘मूक मिरवणूक’ को मध्यान्तर के साथ जोड़कर तैयार किया गया है, जिसमें मुंबई जैसे औद्योगिक महानगर में गरीब श्रमिकों की दुरावस्था और उनकी क्रांतिकारी चेतना को उभारा गया है। ‘तमाशा’ लोकनाट्य की प्रबोधनकारी शैली में लिखा और खेला गया यह नाटक अद्भुत प्रभाव पैदा करता है। ‘मुंबई कोणाची’ के नाटककार ‘‘अण्णा भाऊ साठे एक ऐसे लोकप्रिय दलित कम्युनिस्ट लेखक-कलाकार थे, जो स्वयं 1940-50 के दशक में मुंबई के तमाम जन-संघर्षों के साथ सक्रिय थे। 1950 में लिखे इस नाटक में मुंबई के कामगारों का पूंजीपति वर्चस्व के खिलाफ छेड़ा गया आंदोलन दिखाया गया है। इस नाटक में प्रखर विचारक डेविड हारवे तथा हेनरी लेफेर्वे के ‘शहर पर आम जनता के अधिकार’ संबंधी विचारों को आगे बढ़ाया गया है। कामगारों के खून-पसीने और मेहनत से बनाए गए शहर की आधारभूत संरचना में उनके खुद के लिए कोई जगह नहीं होती। पूंजीपति समूचे अतिरिक्त लाभ को चट कर जाना चाहते हैं, जिसे कामगारों के श्रम द्वारा पैदा किया गया है।’’ (नाट्य समारोह के ब्रोशर से)

गाँवों से रोज़गार के लिए मुंबई आनेवाले ग्रामीणों की व्यथा-कथा उनकी क्रांतिकारी चेतना को उभारती हुई नाटक में लोक की सहजता के साथ प्रस्तुत होती है। सेट डिज़ाइन किया था एम एस सत्थ्यु ने, संगीत निर्देशन धम्मरक्षित रणदिवे का था, लाइट डिज़ाइन अविनाश कुमार का तथा प्रोडक्शन इन्चार्ज थे मसूद अख़्तर। पात्रों में सूत्रधार के रूप में सुलभा आर्य के अलावा सिद्धार्थ प्रतिभावंत, दीपाली बडेकर, मनोज चिताडे, निखिल राठोड, सम्बुद्ध, सुशांत पवार, संजय फूलमाली, रेणुका धावले, आकाश खले, सुमित त्रिपाठी, पृथ्वी केशरी तथा रवि थे। (पूर्व में इस नाटक की विशद विवेचना मैंने इसी ब्लॉग में प्रस्तुत की है।) उल्लेखनीय है कि 1986 में भी मुंबई इप्टा ने शिवदास घोडके के ही निर्देशन में अन्य मराठी नाटक ‘आख्यान’ खेला था।

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नाट्य समारोह के पहले दिन दूसरा नाटक ‘ताजमहल का टेंडर’ रात 9 बजे खेला गया। अजय शुक्ला लिखित तथा सलीम आरिफ द्वारा निर्देशित इस प्रसिद्ध नाटक में समकालीन राजनीति एवं नौकरशाही के भ्रष्टाचार को दिलचस्प तरीके से एक फैंटेसी के माध्यम से उभारा गया है। अगर आज शहाजहाँ आकर ताजमहल बनाने का आदेश देता, तो उसे भी लालफीताशाही की भुलभुलैया में भटका दिया जाता। हास्य और सटीक व्यंग्य के तीरों से नाटक एक ओर तो दर्शकों को बहुत मज़ा देता है, तो दूसरी ओर उन्हें कटु यथार्थ से भी रूबरू कराता है। नाटक में संगीत परिकल्पना थी कुलदीप सिंह की, मेकअप था अनिल मेकअप सर्विस का तथा बैकस्टेज इंचार्ज थे प्रशांत पडाले। मंच पर अभिनय किया था राकेश बेदी, ओमप्रकाश शर्मा, नीरज पाण्डेय, बंसी थापर, पृथ्वी केशरी, अभिषेक श्रीवास्तव, किशोर सोनी, मंजु शर्मा, प्रियल घोरे, पृथ्वी केशरी, अवतार गिल, अकबर खान, पूनम झा, विकास रावत, प्रमोद दुबे, सुनील शिंदे तथा प्रशांत पडाले ने।

नाट्य समारोह के दूसरे दिन 14 दिसम्बर को शाम 5 बजे सागर सरहदी 1964 में लिखा तथा रमेश तलवार द्वारा निर्देशित नाटक ‘तेरे शहर में’ प्रस्तुत किया गया। कोरोना काल से पहले रमेश तलवार ने यह नाटक मुंबई विश्वविद्यालय के नाट्य विभाग के विद्यार्थियों को लेकर निर्देशित किया था, जिसका मंचन लॉकडाउन के बाद मार्च 2022 में किया गया। फुटपाथ पर रहने वाले मुफलिसी में जीने वाले लोगों की कहानी में एक प्रेम त्रिकोण के इर्दगिर्द समूची समाज-व्यवस्था की विषमता और क्रूरता को बुना गया है। इप्टा के स्थापनाकाल के पहले पड़े बंगाल के अकाल की त्रासदी की छाया सागर सरहदी के इस नाटक में महसूस होती है। एक जनता का पक्षधर परंतु गरीब लेखक, एक चोर, एक वेश्या, एक फुटपाथ पर रहने वाली औरत और उसकी बेटी, गाँव से विस्थापित भटकने वाला ग्रामीण, बच्चा आदि के दुख-दर्दों को समेटने वाले इस नाटक का कलेवर 1960-70 के दशक की याद दिलाता है। समस्याएँ आज और भी विशाल और बहुआयामी रूप धारण कर चुकी हैं मगर उन्हें हल करने की ओर सत्ताधारियों का ध्यान अब पूरीतरह से हट चुका है। स्क्रिप्ट और प्रस्तुति में तत्कालीनता के अनुकूल बदलाव को महसूस किया गया। नाटक में संगीत परिकल्पना और निर्देशन कुलदीप सिंह का, प्रकाश संचालन अविनाश कुमार, संगीत संचालन रंजना श्रीवास्तव, विकास यादव का तथा बैकस्टेज इंचार्ज थे संकेत बोंदरे। प्रमुख भूमिका में थे नीरज पांडे, रंजना श्रीवास्तव, आयुषी नेमा, आदित्य लोहे, प्रशांत पडाले, स्वरूप चौधरी, लवेश सावंत, प्रथमेश, मुक्ता आशा, शिवकांत लखनपाल, अनाम पांडे, विकास रावत, अक्षय जाधव, नवीन पांडे, विक्रम टीडी, पृथ्वी केशरी, विकास यादव, हेमपुष्पक अरोरा, अभिषेक शर्मा, इकबाल नियाज़ी, संकेत बोंदरे, प्रतिक्षा पोकले, दक्षता सावंत, निशा गुप्ता।

दूसरे दिन का रात 9 बजे प्रस्तुत दूसरा नाटक था ‘कैफी और मैं’। कैफ़ी आज़मी के कुछ संस्मरणों, रचनाओं और शौकत कैफ़ी की आत्मकथा ‘याद की रहगुज़र’ पर आधारित जावेद अख़्तर लिखित रमेश तलवार निर्देशित इस सांगितिक जीवन-यात्रा से गुज़रना एक अद्भुत अनुभव है। सामाजिक राजनीतिक प्रतिबद्धता में रचे-बसे 1940-50 के दशक के क्रांतिकारी सांस्कृतिक आंदोलन की घटनाओं के साथ गूँथे हुए कैफ़ी और शौकत की जीवन-यात्रा के अनेक पड़ाव बहुत रोमांचित और प्रेरित करते हैं। दोनों का बचपन, उनका मिलना और शादी करना, कम्युन में रहना, उसके बाद का सफर, प्रगतिशील लेखक संघ और इप्टा में उनका सहभाग, कैफ़ी आज़मी की क्रांतिकारी रचनात्मक और राजनैतिक सक्रियता, फिल्मों में प्रवेश और प्रसिद्धि, फालिज का आक्रमण परंतु उससे हार न मानते हुए अपने गाँव मिजवाँ के विकास के लिए लगातार संघर्ष करना – कैफ़ी साहब के गीतों के साथ गूँथे हुए शबाना आज़मी और दानिश हुसैन द्वारा प्रस्तुत जीवन-प्रसंग भीतर तक प्रभावित करते हैं। ‘अभिवाचन’ – बैठे-बैठे किये गये भावपूर्ण पठन की प्रस्तुति कितनी असरदार हो सकती है, इन वरिष्ठ रंगकर्मियों से सीखा जाना चाहिए। कुलदीप सिंह के संगीत निर्देशन में जसविंदर सिंह द्वारा अपने संगतकारों (वायलिन पर जितेन्द्र ठाकुर, तबले पर श्रीधर चारी, कीबोर्ड पर मंदार पारखी, परक्यूशन सुरेन्द्र बेलबंसी) के साथ गाए कैफ़ी आज़मी के प्रसिद्ध फिल्मों के लिए लिखे गीतों को सुनना भी उतना ही रोमांचक था, जितना शबाना और दानिश को सुनना और महसूस करना। डिज़ाइन था एम एस सत्थ्यु का, प्रोडक्शन मैनेजर विकास यादव, प्रकाश संचालन अकबर खान का था। (क्रमशः)

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