उषा वैरागकर आठले
(20 अक्टूबर 1916 को अमर शेख का जन्म हुआ। उनका मूल नाम मेहबूब हुसैन पटेल था। माँ मुनेरबी से उन्हें वारकरी और संत साहित्य की मानववादी विरासत मिली थी। 1942-43 के दौरान वाटेगाव सांगली के अण्णा भाऊ साठे, कोल्हापुर के दत्ता गवाणकर तथा बार्शी के अमर शेख कम्युनिस्ट पार्टी के लाल बावटा कला पथक में शामिल हुए और उन्होंने मराठी शाहिरी कला का स्वरुप बदल दिया। उन्होंने ‘तमाशा’ के शिल्प को अपनाकर उसे ‘लोकनाट्य’ के नए राजनीतिक-सामाजिक आंदोलन की चेतना से जोड़ा। कला पथक के प्रमुख गायक थे लोकशाहीर अमर शेख। अण्णा भाऊ साठे के संवाद, दत्ता गवाणकर का निर्देशन और अमर शेख की बुलंद पहाड़ी आवाज़ के संगम से दूरदराज़ के हज़ारों लोग खींचे चले आते थे। उन्होंने न केवल किसान सभा, इप्टा और कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यक्रमों में अपने गीतों से धूम मचाई, बल्कि आगे चलकर ‘संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन’, ‘गोवा मुक्ति संग्राम’ में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। अमर शेख एक अनूठे गायक होने के अलावा शानदार अभिनेता, वक्ता और रचनाकार भी थे। उनके दो कविता-संग्रह ‘धरतीमाता’ व ‘कलश’, एक गीत-संग्रह ‘अमरजीत’ प्रकाशित हुए। उन्होंने एक नाटक ‘पहला बलि’ और अनेक पोवाडे (छत्रपति शिवजी महाराज, होळकर और उधमसिंह पर लिखे) तथा लावणी लिखीं। ‘युगदीप’ और ‘वक़्त की आवाज़’ नामक पत्रिकाओं का संपादन किया। आचार्य अत्रे ने अमर शेख को ‘महाराष्ट्र का माइकोव्स्की’ कहा था। महाराष्ट्र राज्य साहित्य-संस्कृति मंडल द्वारा 2017 में अमर शेख की अधिकांश रचनाओं का संकलन उनकी बेटी मलिका अमर शेख के संपादन में ‘निवडक अमर शेख’ शीर्षक से प्रकाशित किया है।)
महाराष्ट्र की शाहीरी परम्परा में समाजवादी समतावादी वामपंथी विचारों को पिरोकर अपनी ऐतिहासिक विरासत से जनसाधारण को अपने गीतों, लोकनाटकों तथा भाषणों से जोड़ने वाले इप्टा के संस्थापक सदस्यों अण्णा भाऊ साठे, अमर शेख और द ना गवाणकर के बिना जनवादी सांस्कृतिक आंदोलन की चर्चा असंभव है। तीनों महान शाहीरों ने जो गहरी प्रतिबद्ध क्रांतिकारी छाप मराठीभाषी समाज पर छोड़ी है, उसकी प्रतिध्वनि वर्तमान के अनेक शाहीरों के गीतों में गूँज रही है। भारत के जनवादी सांस्कृतिक आंदोलन में भी इन महान शाहीरों का ज़िक्र बार बार मिलता है।
मुंबई में सांस्कृतिक जनजागरण को आगे बढ़ाने वाली संस्थाओं में एल्गार सांस्कृतिक मंच की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। धम्मरक्षित रणदिवे, सिद्धार्थ प्रतिभावंत, प्रवीण खाडे, स्वाति उथळे एवं अन्य युवा प्रतिभाशाली गायकों-अभिनेताओं की टीम एल्गार सांस्कृतिक मंच के माध्यम से महाराष्ट्र और देश के अन्य प्रदेशों में भी निरंतर रचनात्मक प्रस्तुतियाँ करती है।
20 अक्टूबर 2022 को लोकशाहीर अमर शेख की 106वीं जयंती के अवसर पर एल्गार सांस्कृतिक मंच ने उनकी स्मृति में एक ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित किया, जिसका प्रसारण 20 की शाम को एल्गार के यूट्यूब चैनल पर किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए प्रवीण खाडे ने बताया, ‘‘शाहीर अमर शेख का नाम लिये बिना महाराष्ट्र के सांस्कृतिक आंदोलन का, प्रबोधनकारी आंदोलन का इतिहास अधूरा रहेगा। उन्होंने कहा था कि आने वाला पल बीत जाएगा, यह फिर वापस नहीं आ सकता इसलिए हमें समय का सदुपयोग करते हुए अपने उद्देश्य के लिए संघर्ष करते हुए आगे बढ़ना होगा। उनकी इस ललकार को, संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन में उनके अमूल्य योगदान को सलाम करते हुए उनकी परम्परा को आगे बढ़ाने वाले वरिष्ठ शाहीर निशांत जैनू शेख तथा शाहीर शिवराम सुकी के साथ एल्गार सांस्कृतिक मंच के हम युवा साथी उनकी जयंती मना रहे हैं।’’
लाल बावटा कला पथक में अमर शेख के साथ निशांत शेख के माता-पिता केशर जैनू चाँद शेख तथा जैनू शेख, दोनों की सहभागिता रही है। उनकी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए, अमर शेख के गीतों को जीवंत रखने वाले शाहीर निशांत शेख ने अण्णा भाऊ साठे का एक प्रसिद्ध ‘गण’ (मंगलाचरण जैसा गीत), जिससे अमर शेख हमेशा लोकनाट्य की शुरुआत करते थे, प्रस्तुत किया, जिसका भावार्थ इस प्रकार है – ‘विश्वव्यापी जन गण को वंदना करते हुए हम शाहीर अपने नए तमाशे का आरम्भ करते हैं। हम कलाकार आपकी सेवा के लिए आए है। हमें आशीर्वाद दीजिए। हम कला के दास हैं, हम अज्ञान का विनाश करने और देश का विकास करने आए हैं। अपने मन की इसी एकमात्र आस को लेकर हम इस लोकनाट्य की शुरुआत कर रहे हैं।’’
इसके बाद निशांत शेख ने महाराष्ट्र तथा देश के क्रांतिकारियों को सलाम करते हुए ‘माना चा मुजरा’ प्रस्तुत किया, जिसका भावार्थ इस प्रकार है – इस मातृभूमि के लिए अपनी जान पर खेलने वाली मर्दानी झाँसीवाली, वासुदेव बळवंत फडके और मंगल पाण्डे ने अपने प्राणों की आहुति दी। इस देश के लिए भगतसिंह फाँसी के फंदे पर झूल गया। अंग्रेज़ों से लड़ने वाले अनंत कान्हेरे, दामोदर चाफेकर तथा बालकृष्ण चाफेकर दोनों बंधु, नाना पाटील, उमाजी नाइक, अनंत लक्ष्मण कान्हेरे, लघुजी साळवे, बाबू गेनू आदि महाराष्ट्र के अनेक वीरों ने अपनी जान कुर्बान की, उन्हें सबसे पहले सम्मानपूर्वक याद करते हुए ‘मानाचा मुजरा’ पेश करते हैं।
निशांत शेख ने अमर शेख को यद्यपि नहीं देखा, परंतु अपने माता-पिता द्वारा सुनाए गए ‘किस्से’ ज़रूर सुने थे, जिनके माध्यम से उनकी स्मृति में अमर शेख का स्वभाव, उनका कलाकारों के प्रति प्यार और नाराज़गी का अंदाज़ तथा उनके सांस्कृतिक संघर्ष की अनेक यादें ताज़ा हैं। गोवा मुक्ति संग्राम में अमर शेख ने बहुत बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। गोवा की सड़कों पर अपनी बुलंद आवाज़ में गाते हुए गोवा को पुर्तगालियों से मुक्त करके दोबारा महाराष्ट्र में सम्मिलित करने बाबत वे मांग करते थे। उस जनसमूह पर पुर्तगाली पत्थरबाज़ी करते थे, जिससे जैनू शेख बहुत डरते थे। उन्हें समझाते हुए अमर शेख ने कहा था, ‘‘मार खाओगे तभी सच्चे कार्यकर्ता बनोगे। आंदोलन को आगे बढ़ाकर मेरा नाम रोशन करोगे। अगर तुम यूँ ही पत्थरों से डरकर भागोगे तो शाहीर नहीं बन पाओगे।’’ पिता जैनू उस समय कला पथक के ‘वग नाट्य’ (प्रहसन) में कृष्ण के सखा पेंद्या की भूमिका निभाते थे, अमर शेख कृष्ण के किरदार में होते थे। उनके बीच हँसी-मज़ाक चलते थे। पिताजी दर्शकों से पूछते, ‘‘ये कौन है आपने पहचाना? ये ‘ओल्ड’ कृष्ण हैं।’’ वे कहते, ‘‘अच्छा, तू मेरा मज़ाक उड़ा रहा है रे हरामखोर!’’ पिताजी कहते, ‘‘आपने ही तो कहा था, मुझे जो बोलना है, मैं बोलूँ!’’ वे कहते, ‘‘तो तू क्या ऐसा बोलेगा?’’ इसतरह के अनेक मज़ेदार किस्से मेरे माता-पिता बताया करते थे।
वरिष्ठ शाहीर शिवराम सुकी ने अमर शेख के बारे में जानकारी देते हुए कहा, ‘‘शाहीर अमर शेख महाराष्ट्र की भूमि द्वारा देखा गया एक स्वप्न थे।
शाहीर शिवराम सुकी ने अमर शेख का वह गीत सुनाया, जिसे 14 अगस्त 1947 को मुंबई आकाशवाणी ने अपने स्टुडियो में रिकॉर्ड किया था। उन्हें इस गाने की रिकॉर्डिंग के लिए बाकायदा फोन कर आमंत्रित किया गया था। 15 अगस्त को यह गाना स्वतंत्रता-प्राप्ति के विशेष कार्यक्रम में प्रसारित होना था, मगर पता नहीं, क्या चक्र चला, वह गीत नहीं बजा। अमर शेख कम्युनिस्ट थे, इसलिए शायद ऐसा हुआ होगा। हालाँकि यह गीत 15 अगस्त को शिवाजी पार्क दादर में आयोजित जन सभा में अमर शेख ने अपनी बुलंद पहाड़ी आवाज़ में गाया और वह जन मानस की स्मृति में हमेशा के लिए अमर हो गया। गीत है,
हिंद संघराज्याच्या जन आत्म्या तू घेई प्रणाम
पराधीन जगताच्या दुर्दम दोस्ता घेई प्रणाम।
महाराष्ट्र गुजरात आंध्र कर्नाटक तमिळनाड
तसेच केरळ असम ओरिसा राजस्थान बिहार
उगवतीचा पंजाब मावळतीचा बंग,
लुकलुकती रत्ने उधळीत नित नव रंग
स्वतंत्र झाली, नित नव फुलली, पाहुनी तव बलिदान
घेई घेई प्रणाम, घेई घेई प्रणाम।
शिवराम जी ने पूरा गीत सुनाया था। प्रवीण खाडे ने बताया कि कई साथियों ने यह गीत पहली बार शाहीर शिवराम सुकी से आज़ादी के 75वें वर्ष के कार्यक्रम में सुना था। उस समय का क्रांतिकारी साम्यवादी जीवन-दर्शन समूचे गीत में कलात्मकता और जोश के साथ व्यक्त हुआ है। फिलहाल इसके पहले अंतरे का हिंदी भावानुवाद प्रस्तुत है,
हिंदुस्तानी संघ राज्य के जनगण को हमारा सलाम। विश्व के परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़े हुए दोस्तों को सलाम। महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, असम, ओडिसा, राजस्थान, बिहार के अलावा उगने वाले पंजाब तथा ढलने वाले बंगाल जैसे अनमोल रत्न अब नए-नए रंग बरसाएंगे। ये राज्य अब स्वतंत्र हो गए हैं, अब ये नए तरीके से विकसित होंगे और सभी का बलिदान सार्थक सिद्ध होगा। सभी को सलाम।
प्रवीण खाडे ने वर्तमान राजनीतिज्ञों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि आज वोट बैंक की खातिर जो भी किया जा रहा है, उसमें अगर अमर शेख को याद करने से कोई वोट बैंक बनता तो उन्हें महत्व देने वालों की लाइन लग जाती। मगर ऐसा नहीं है, इसलिए हम शाहीरों को ही अपने इन पुरखों की विरासत के प्रति सजग रहना होगा।
शाहीर अमर शेख की जन्म शताब्दी के वर्ष 2016 में उनका एक स्मारक मुंबई के सात रस्ता में अमर शेख चौक पर जन सहयोग से बना है, जिसका अनावरण किया जाना ज़रूरी है। इसके पास मुंबई वृहन्नगरपालिका का कॉमरेड अमर शेख मार्ग का चमकता हुआ बोर्ड दिख रहा था।
महाराष्ट्र शासन द्वारा अब तक इसे पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया है। शाहीर निशांत शेख ने स्मारक के रास्ते और स्मारक पर लिखी काव्य पंक्तियों को अपने मोबाइल के कैमरे के माध्यम से दिखाया। स्मारक पर पंक्ति लिखवाई है ‘कॉमरेड अमर शेख स्मृति स्मारक’। साथ ही उन्हें समर्पित करती काव्य-पंक्तियाँ भी लिखवाई गई हैं, जिनका सार है कि समाज को शोभित करने वाले शाहीरों की सीख पर चलते हुए हम सब अपने राज्य को सुखी और समृद्ध बनाए।
आज समाज-शोभा सजुनि मज पुढे यावा।
साडे तीन कोटीत सामावला जावा।
त्याने शोभा-सर्जाचा कित्ता आज गिरवावा।
सत्तेचा नांगर जरबेत त्याने चालवावा।
नफेबाज चोर त्याने दूर सारावा।
अवघा महाराष्ट्र समृद्ध सुखी बनवावा।
त्या थोर समाजशोभाचा पोवाडा आम्ही गावा।
हीच फक्त आशा अमर अभिलाषा,
दूजी नाही भाषा, शाहीराचा गोड हट्ट पुरवावा जी जी जी…।
निशांत जी ने बताया कि कॉमरेड सुबोध मोरे, कॉमरेड प्रकाश रेड्डी को भी उन्होंने यह बात बताई है कि इस स्मारक के लिए हमें आंदोलन खड़ा करना होगा। 2016 से यह स्मारक तैयार होकर उपेक्षित-सा पड़ा है, यह शाहीर अमर शेख का ही नहीं, महाराष्ट्र का भी अपमान है। इस अपमान के निराकरण के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को भी कोई कदम उठाना चाहिए। आज अगर हम अपनी डफली लेकर यहाँ किसी कार्यक्रम का आयोजन कर महाराष्ट्र शासन की आँख खोलने की कोशिश करते तो बेहतर होता, मगर अब हम भविष्य में उचित समय देखकर इस तरह का आंदोलन ज़रूर करेंगे ताकि संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन में सक्रिय भाग लेकर उसके लिए बेहद सार्थक विचारपूर्ण और जोशभरे गीत लिखने वाले इन शाहीरों को आने वाली पीढ़ी याद रख सके। इस कार्यक्रम के माध्यम से मैं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी तथा महाराष्ट्र शासन का ध्यान आकर्षित कर रहा हूँ कि वे इन शाहीरों के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए कदम उठाए। एल्गार सांस्कृतिक मंच के प्रवीण खाडे ने समापन करते हुए कहा कि, सचमुच उस समय के इन शाहीरों की आवाज़ पर समूची जनता उठ खड़ी होती थी, उनकी स्मृति को बनाए रखने के लिए सभी साथी मिलकर ज़रूर साथ आकर कोशिश करेंगे।
प्रवीण खाडे ने अंत में अमर शेख का बहुत प्रसिद्ध मछुआरा गीत ‘सुटला वादळी वारा’ गाया। उन्होंने अमर शेख की अद्भुत गायकी को काफी कुछ जज़्ब किया है। इस पर शिवराम जी ने जानकारी दी कि केशरबाई इस गीत में कोरस में बहुत ऊँचे सुर में गाती थीं। प्रवीण और एल्गार सांस्कृतिक मंच मुंबई के सभी साथियों को लाख लाख सलाम। अपनी बेहतरीन विरासत को इस तरह सहेजना और आगे बढ़ाना वाकई काबिलेतारीफ़ है।