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कोरोना से मुलाकात

कोरोना से मुलाकात

(रायगढ़ इप्टा ने अपने यूट्यूब चैनल पर ‘मुद्दे की बात’ शीर्षक से एक टॉक शो शुरु किया था। मार्च में कोरोना महामारी के कारण अचानक लॉकडाउन घोषित किया गया और चारों तरफ अफरातफरी मच गई थी। कोरोना वाइरस के बारे में तमाम सूचनाओं और भ्रमों को एक रोचक बातचीत में समेटने के लिए अजय आठले ने यह स्क्रिप्ट तैयार की थी, जिसका प्रसारण अप्रेल 2020 में किया गया। इसमें एंकर की भूमिका में थे युवराज सिंह आज़ाद और कोरोना वायरस की भूमिका अजय आठले ने खुद निभाई थी। )

एंकर : नमस्कार… मुद्दे की बात के इस नए एपिसोड में आप सभी का स्वागत है। जैसा कि आप जानते हैं कि इस टॉक शो में हम हमेशा ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा करते है। आज सबसे ज्वलंत मुद्दा कोरोना वायरस है, जिसके आतंक से पूरा विश्व भयभीत है। आज हम इसी मुद्दे पर चर्चा करेंगे और आज के हमारे खास मेहमान है खुद ‘कोरोना वायरस जी’’। कोरोना जी आपका इस कार्यक्रम में स्वागत है।
कोरोना : नमस्कार… क्या मैं जान सकता हूँ…
एंकर : जी, पूछिये…
कोरोना : क्या आप कांग्रेसी हैं? जो मुझे जी… जी… कहकर पुकार रहे हैं?
एंकर : नहीं… नहीं… ऐसी कोई बात नहीं है। हम गैर राजनैतिक लोग हैं और हमारी संस्कृति के अनुसार हर आए हुए मेहमान को हम आदरपूर्वक सम्बोधित करते हैं। मैं जानना चाहता हूँ कोरोना जी, कि आपके भारत आने का सफर कैसा रहा?
कोरोना : (सिसकते हुए) आप लोगों का प्यार… (फिर रोने लगता है)
एंकर : कोरोना जी, कोरोना जी… देखिये, रोइये मत प्लीज़… ये हमारे साहब पर छोड़ दीजिए। हम सभी देशवासियों ने रोना बंद कर दिया है और इसे साहब पर छोड़ दिया है। हमारे हिस्से का भी वही रो लेते हैं।
कोरोना : देखिये, ना तो मैं यहाँ लाया गया हूँ, ना ही बुलाया गया हूँ।
एंकर : कोरोना जी, आप स्टुडियो में बैठे हुए हैं… रैली को संबोधित नहीं कर रहे हैं… प्लीज़…
कोरोना : ओके, ओके … ना तो मैं लाया गया हूँ, ना ही बुलाया गया हूँ… एक्सीडेन्टली आया हूँ।
एंकर : एक्सीडेन्टली ?
कोरोना : जी… जी… ये एक संयोग है, इसे प्रयोग मत समझियेगा।
एंकर : जी, तो बताएँ कि आपका आगमन कब हुआ और कैसा लग रहा है यहाँ आकर?
कोरोना : मैं आपको बतला दूँ कि मैं तो आपके देश में जनवरी के दूसरे सप्ताह में ही आ गया था।
एंकर : ओ माई गॉड…, इतने दिन आप क्या कर रहे थे?
कोरोना : ऐहतियात बरतना पड़ता है… फिर भीतर ही भीतर मैं भी डरा हुआ था कि कहीं पहचान न लिया जाऊँ! आपके यहाँ तो कपड़ों से ही लोगों को पहचान लेते हैं… गनीमत, मुझे नहीं पहचाना!


एंकर : क्यों?
कोरोना : अरे क्योंकि मैं कपड़े ही नहीं पहनता इसलिए पहचाना नहीं गया। फिर थोड़ा आराम करके सोच ही रहा था कि कहाँ जाऊँ… तभी पता चला कि विश्व का चौकीदार आपके यहाँ पिकनिक मनाने आ रहा है।
एंकर : तो आप फिर गुजरात गए?
कोरोना : अरे नहीं, मैंने सोचा ज़रूर कि वहाँ जाऊँ… क्योंकि वहाँ बहुत भीड़ होती मगर तभी एक हादसा हुआ…
एंकर : हादसा?
कोरोना : हाँ, अरे वो नेहरू खानदान का छोकरा! वो चिल्लाने लगा कि कोरोना से सुनामी आ जाएगी… सरकार गंभीर नहीं है…। सचमुच मैं घबरा गया था। ये नेहरू लोग समय से ज़रा आगे सोच लेते हैं…। गनीमत कि छोकरे को पप्पू कहकर टाल दिया वरना मैं तो घबरा ही गया था कि मैं तो बिना स्कोर के ही निपट जाऊँगा।
एंकर : इसके बाद आपने क्या किया?
कोरोना : मैं उचित अवसर की तलाश कर रहा था। इस बीच खबर मिली कि मेरे कुछ और साथी भी आ गए हैं। हम सब मिलकर तय कर ही रहे थे कि कैसे हमें जल्द से जल्द पसरना है… मगर हम कामयाब नहीं हो पा रहे थे।
एंकर : तो आप मानते हैं कि हमारी सरकार ने दूसरे देशों की सरकारों के मुकाबले ज़्यादा ठोस रणनीति अपनाई, जिसके कारण कोरोना वायरस, जो दुनिया भर में आतंक फैला रहा था, हमारी सरकार के सामने घुटने टेकने पर मजबूर हो गया… आप चुप क्यों हैं कोरोना जी? बतलाइये… जवाब दीजिए, नेशन वॉन्ट्स टू नो… नेशन वॉन्ट्स टू नो…
कोरोना : एक मिनट… एक मिनट! ये आप इतना चीख-चिल्ला क्यों रहे हैं? अगला पद्म पुरस्कार चाहिए है क्या? और आपका चैनल देखते कितने लोग हैं? 500… 800… 1000… ? यही नेशन है आपका?
एंकर : आप मुद्दे को मत भटकाइये, जवाब दीजिये… आप क्यों नहीं फैल पाए… नेशन वॉन्ट्स टू नो…
कोरोना : फिर वही…
एंकर : ठीक है… ठीक है, बोलिये…
कोरोना : देखिये, आपकी सरकार ने तो हमारी उपस्थिति को गंभीरता से लिया ही नहीं। आपके स्वास्थ्य मंत्री कहते रहे कि कोरोना से डरने की ज़रूरत नहीं है। मैं तो जनवरी में ही आ गया था मगर 21 मार्च तक मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारे… सभी उपासना स्थल खुले हुए थे। आप लोगों के लिए तो लॉकडाउन से ज़्यादा ज़रूरी मध्यप्रदेश की सत्ता का मामला था…।
एंकर : लेकिन इस सबके बावजूद आप भी तो अपने पाँव नहीं पसार पाए?
कोरोना : हमें अपनी कमज़ोरियों का भान यहीं आकर हुआ…।
एंकर : कैसे?
कोरोना : देखिये, हम वो वाइरस हैं, जो सम्पर्क में आकर ही पसरते हैं, केवल हवा में हम प्रसार नहीं कर सकते। हमें लगा था कि, जब हम यूरोप में तहलका मचा सकते हैं तो भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में तो हम तबाही मचा देंगे। मगर हम चूक गए…
एंकर : कोरोना जी, हम आपके अनुभवों को विस्तार से जानना चाहेंगे।
कोरोना : देखिये, यूरोप-अमेरिका जैसे देशों में हवा और पानी इतना शुद्ध है कि लोग इसके आदी हो चुके हैं। उन्हें अगर थोड़ा भी प्रदूषण मिले तो वे बर्दाश्त नहीं कर पाते। लेकिन यहाँ तो हाल ही निराला है। यहाँ की पवित्र नदियों का पानी भी इतना प्रदूषित है कि मेरे जैसा वायरस डुबकी लगा ले तो बाहर ही न आ पाए। और हवा में तो इतने प्रकार के वाइरस और बैक्टिरिया मौजूद हैं कि हमें ही अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल लग रहा था। हम तो ये सोच रहे थे कि लोग इतने प्रदूषण में जीवित कैसे हैं!
एंकर : फिर आप हमारे देश तक आ कैसे गए?


कोरोना : मैं उसी बात पर आ रहा हूँ। देखिये, हम जिनके शरीर पर बैठकर यहाँ आए हैं, वे किसी भी मामले में यूरोपियन्स से कम नहीं थे। हम यहाँ प्लेन में बैठकर आए और उन उच्चवर्गीय लोगों के साथ हम पार्टियों में गए। हम कुछ दिन उच्चवर्गीय सर्किल में ही घूमते रहे। बहुत दिनों तक उन्हीं लोगों के बीच अपना प्रसार करते रहे। हमने ये महसूस किया कि सोशल डिस्टैन्सिंग तो आपके यहाँ पिछले 5000 सालों से मौजूद है। हरेक व्यक्ति जाति में, वर्ण में बँटा हुआ है। यहाँ तक कि, हर धर्म में जाति की व्यवस्था थोड़ी-बहुत बनी हुई ही है। शहरों में यह व्यवस्था थोड़ी टूट गई है इसलिए हम यहाँ थोड़ा सफल हुए।
एंकर : तो आप यह कहना चाहते हैं कि हमारी सरकार ने जो 21 दिनों का लॉकडाउन घोषित किया, वो बेकार है? उसे नहीं करना था?
कोरोना : मैंने कब कहा? आप बेवजह उत्तेजित हो जाते हैं। लॉकडाउन बहुत ज़रूरी है अगर फैलने से रोकना है तो… यहाँ हम उच्च वर्ग तक ही सीमित रह गए थे मगर उच्च वर्ग के कारण यहाँ भय निर्माण हुआ। आप तो मीडिया को जानते हैं… पाँच गरीब भूख से मर जाएँ तो खबर नहीं बनती, लेकिन तैमूर दूध के लिए रोने लगे तो मीडिया में तहलका मच जाता है। वही कनिका के साथ हुआ। इसके बाद सरकार को लॉकडाउन के लिए सोचना पड़ा।


एंकर : कोरोना जी, आपको भारत आए तीन महीने हो रहे हैं। इस बीच आपने हमारा खिलंदड़पन भी देखा और लॉकडाउन के दौरान हमारी गंभीरता भी देखी। आपका अनुभव क्या कहता है?
कोरोना : सचमुच अद्भुत देश है। जब लॉकडाउन नहीं था, हम भी अपना प्रसार नहीं कर पा रहे थे। केवल शहरों तक ही सीमित थे। लॉकडाउन के क्या राजनैतिक कारण थे, मैं इस विवाद में नहीं पड़ना चाहता। लेकिन लॉकडाउन के बाद ही मज़दूर बड़ी तादाद में बाहर निकले और अपने-अपने गाँव की ओर लौटने लगे। हमें यह एक सुनहरा मौका लगा प्रसार का। हम इनके साथ भी हो लिये मगर निराशा ही हाथ लगी।
एंकर : कोरोना जी, कोरोना जी! हम आपसे गाँवों के अनुभव सुनना चाहेंगे।
कोरोना : ओह… नेशन वॉन्ट्स टू नो?
एंकर : आप तो मज़ाक पर उतर आए!!
कोरोना : मेरा यह अनुभव रहा कि गाँववाले ज़्यादा समझदार हैं। उन श्रमिक मज़दूरों में ज़बर्दस्त जिजीविषा है।

इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी वो प्रदूषित पानी और हवा तथा अन्न का सेवन करते हुए अपने घर की ओर निकल पड़े … सचमुच अद्भुत हैं वे! हमारे कई साथियों ने इस बीच दम तोड़ दिया। गाँवों में तो 5000 साल पुरानी सोशल डिस्टेन्सिंग प्रणाली के कारण हम वहाँ फैल नहीं पाए और बहुत अच्छी खबरें नहीं हैं। जो बाहर से आ रहे थे, उन्हें तो गाँव के सीवान पर ही रोक दिया गया। हमारे बहुत से साथी दम तोड़ गए।
एंकर : ओह… तो आप इसीलिए उदास है!
कोरोना : नहीं कुछ और भी खबरें हैं, जो अच्छी नहीं हैं।

एंकर : ओह कैसी खबरें?
कोरोना : देखिये, हमें पूरे विश्व में फैले चार महीने से ज़्यादा हो गए मगर हमें कहीं दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा। पहली बार हमें भारत में आकर ऐसा लगा कि हमारे जीन्स में शायद बदलाव हो रहा है। हम जात-पाँत और धर्म से परे थे लेकिन यहाँ हम महसूस कर रहे हैं कि हम साम्प्रदायिक होते जा रहे हैं। ऐसी खबरें आ रही हैं कि एक धर्मविशेष के व्यक्तियों के बीच फैले वायरस दूसरे धर्मविशेष के व्यक्तियों के शरीर में पलने वाले वायरस से नफरत पाल रहे हैं, आपस में जातियों में बँट गए हैं और उनके बीच घमासान मारकाट हो रही है, जो सचमुच चिंताजनक है।
एंकर : ओह… यह तो सचमुच चिंता की बात है कोरोना जी। हमारे पास वक्त की कमी है इसलिए आपसे आखिरी सवाल … आप इस वक्त हमारे देश की जनता को क्या संदेश देना चाहेंगे?
कोरोना : देखिये, इस वक्त यही कह सकता हूँ कि अपने समाज और अपनी सरकार पर भरोसा रखें, उनके द्वारा बताए गए नियमों का पालन करें। सोशल डिस्टेन्सिंग तो आपके यहाँ है ही, मगर अब नए औद्योगिक समाज में नई सोशल डिस्टेन्सिंग बनाए रखें तथा विज्ञान पर भरोसा रखें। डॉक्टर और वैज्ञानिकों का सम्मान करें।

अभी तक जितनी भी महामारियाँ फैलीं, इन्हीं वैज्ञानिकों ने इन पर विजय पाई है। मेरे ऊपर भी जल्द वैक्सीन बनेगी। घबराइये मत, मैं कहीं नहीं जाऊँगा। हो सकता है कि सुप्तावस्था में चला जाऊँ और फिर बाद में आपसे मुलाकात हो। तब तक वैक्सीन बन चुकी होगी और मैं भी इन्फलुएन्ज़ा और मलेरिया की तरह साधारण बीमारी बनकर आपके बीच रह जाऊँ। सरकार के निर्देशों का पालन कीजिए। जल्द मिलेंगे… शीघ्र ही…
एंकर : आपने अपना कीमती वक्त हमारे लिए निकाला और बहुत सी जानकारियाँ दीं। आपसे बात करके अच्छा लगा। धन्यवाद।

अभी आप कोरोना वायरस से मुलाकात सुन रहे थे। आपको ये वीडियो कैसा लगा, बॉक्स में कमेंट लिखना ना भूलें। हमें ज़रूर बताएँ कि अगला एपिसोड़ आप किन विषयों पर देखना चाहते हैं। हमारा चैनल सबस्क्राइब करना न भूलें। धन्यवाद। गुडबाई।

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View Comments (2)
  • वाह! कितना करारा व्यंग किया हैं इस सामाजिक राजनैतिक पहलुओं पर. संवाद बहुत gerenal way me hain. जो आम जन को बहुत आसानी से समझ आ सकता. भाषा बहुत ही सटीक सरल और सहज हैं. 👍👍

  • अजय सर जी ने इस प्रोग्राम मे सरकार के लपरवाही के और करोना की आनदेखी को मुक जनता को बतने का प्रयास किये थे

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